December 06, 2011

शोभा सिंह और शादीलाल


sir shadi lal



                                                               sir shobha singh

“अंकल जाओ ना” ! कभी गुस्से में वह बोल देती है, जब मेरा दिमाग नहीं चलता तो उस लड़की से पूछता हूँ, उससे ही दिमाग चलने लगता है । एक बार उसने चाय पिलाई – मुझे वह लड़की बहुत पसंद है इसका कोई गलत अर्थ न ले जब तक कुछ नहीं होता उसी से मुझे प्रेरणा मिलती है, इस प्रेरणा के भी बड़े अलग अलग नियम है बहुत सारी लड़कियों से ‘प्रेम करने’के बाद भी मैं चरित्रहीन नहीं रहा , चलिये एक दृश्य का किस्सा सुन लीजिये दिल्ली की एक प्रमुख कवियित्रि से मेरा प्रेम चल रहा था कि मैं दिल्ली गया । जनपथ होटल में ठहरा उसने दिल्ली के सारे पाँच सितारा होटलों में खाना खिलाया, नाश्ता कराया, कॉफी पिलाई, अच्छी वकील भी थी वह । एक बार दिल्ली कोर्ट मे हत्या के केस में खड़ी हुई । मुझे बहस सुनाने के ले गई, जहां मैं सो गया । उसकी एक सहेली आई, मैं भी बैठा हुआ था, उसके दो भतीजे और एक भांजा पढ़ने जा रहे थे । सहेली ने ऐसे ही पुंछ लिया किस स्कूल में पढ़ते है ये दोनों ? उसने बड़े गर्व से बताया ‘सर शोभा सिंह स्कूल में’ ।


उसकी सहेली कि आँखें आश्चर्य से फटी रह गई । उसने पूछा तुम्हें मालूम है सर शोभा सिंह कौन थे और उनका नाम के आगे अँग्रेजी‘सर’ कैसे लगा ? मेरी प्रेमिका ने बताया सर शोभा सिंह खुशवंत सिंह के पिता थे तब उसने बताया सर शोभा सिंह वह आदमी थे जिन्होने श्री सरदार भगत सिंह के विरुद्ध गवाही दी थी उसने गाड़ी मैं बैठे बच्चो को बुलाया और कहा “आज से तुम उस स्कूल में झांकना भी मत, दूसरे स्कूल में होगा तुम्हारा प्रवेश, नहीं होगा तो भी उस स्कूल मे झांकना भी मत ।

सर शादीलाल और सर शोभा सिंह, भारतीय जनता कि जनरों मे घृणा के पात्र थे अब तक है सोचिए भारतीय जनता किस तरह कि है ? खुशवंत सिंह ने भी अपने पिता के बारें मे अधिक नहीं लिखा है बस उनका जिक्र किया है खुशवंत सिंह को अच्छी तरह पता था भारतीय जनता कि नजर में उनके पिता घृणा के पात्र थे आज कनौट प्लेस में सर शोभा सिंह स्कूल में कतार लगती है बच्चो को प्रवेश नहीं मिलता है श्यामली का शक्कर (शराब) का कारखाना उत्तर प्रदेश मे ‘नंबर 1’ है, क्योंकि जनता को नहीं पता है कि भगत सिंह के खिलाफ विरुद्ध गवाही देने वाले यही दो व्यक्ति थे । ;बाकी कोई हिंदुस्थानी तैयार नहीं था, लेकिन अंग्रेज़ सरकार नई दो गद्दार पैदा कर लिएमेरी आँखें भर आई, वह सहेली रोने लगी हम तीनों चुपचाप बैठे रहे दो घंटे, फिर मुझे ध्यान आई सन 73-74 कि एक घटना । एक बार मुझे बागपत जिले के श्यामली के पास कहीं जाना था बहन के लिए लड़का देखने, लड़का मामा जी ने बताया था, बागपत में कोई गाँव था जहां उसके पिता रहते थे उन्होने श्यामली के शक्कर (शराब) के कारखाने में रुकने कि व्यवस्था कर दी । हम श्यामली गाँव पहुंचे, वहाँ

शक्कर (शराब) के कारखाने में जिस तरह हमारा स्वागत हुआ वह अभूतपूर्व था , हम और मामाजी बहुत चमत्कृत थे दूसरे दिन सुबह 5 बजे निकालना था सुबह 4 बजे चाय और नाश्ता मिल गया हमें नाश्ता क्या पूरा खाना था दोपहर बाद हम लौटे थके थकाए, सारे बेयरों में खलबली मच गई बेयरों ने आकर कहा यहाँ नाई है, उसने आकर पैर दबाये । संध्या को जरा सी फुर्सत मिली, हम टहलने के लिए निकले एक चाय के ढाबे पर ।

चाय वाला बहुत बातुनी था, बोला – साहब किसके यहाँ रुके है ? हमने कहा शक्कर (शराब) के कारखाने में ? उसकी आँखों मे वही भाव था जो मेरी प्रेमिका कि सहेली कि आँखों मे था – आश्चर्य, घृणा, अवहेलना के मिले-झूले भाव । आपको पता है किसका कारख़ाना है श्यामली में ? बनियो ने “सर शादीलाल’के मरने पर कफन तक बेचना मना कर किया था उसके लड़के कफन तक दिल्ली लेने गए थे” भगत सिंह के;विरुद्ध गवाही देने वाला यह दूसरा व्यक्ति था, दोनों को ही सर कि उपाधि मिली अंग्रेज़ो से । दोनों को ही बहुत सारा पैसा मिला, लेकिन भारतीय जनता में कफन तक उन्हें नहीं बेचा गया असेंबली में भगत सिंह के बम फेंकने के समय यह दो गवाह थे । शादीलाल सर शादीलाल और सर शोभा सिंह, भारतीय जनता कि नजरों मे घृणा के पात्र थे अब तक है सोचिए भारतीय जनता कि तरह कि है ? खुशवंत सिंह ने भी अपने पिता के बारें मे अधिक नहीं लिखा है बस उनका जिक्र किया है खुशवंत सिंह को अच्छी तरह पता था भारतीय जनता कि नजर में उनके पिता घृणा के पात्र थे आज कनौट प्लेस में सर शोभा सिंह स्कूल में कतार लगती है बच्चो को प्रवेश नहीं मिलता है श्यामली का शक्कर (शराब) का कारखाना उत्तर प्रदेश मे ‘नंबर 1’ है, क्योंकि जनता को नहीं पता है कि भगत सिंह के खिलाफ विरुद्ध गवाही देने वाले यही दो व्यक्ति थे । ;बाकी कोई हिंदुस्थानी तैयार नहीं था, लेकिन अंग्रेज़ सरकार नई दो गद्दार पैदा कर लिए, हम लोगो ने तुरंत रिक्शा मंगवाया और ‘गेस्ट-हाउस’रवाना ओ गए । वेटर पूछते रह गए “सर आप तो कल जाने वाले थे ?” हमने कुछ नहीं सुनी, एक जगह रात काटी, सुबह बस पकड़ कार आ गए । आज मैं अपनी उस प्रेमिका को याद करता हूँ उसका नाम बताने में कोई परेशानी नहीं लेकिन …..

वह भी सरदार थी, वह भी पाकिस्तान से आई थी, वह भी खुशवंत सिंह के गाँव के पड़ोस से थी इसलिए उसके भतीजो और भाँजो को

सर शोभा सिंह के स्कूल मे प्रवेश मिला यह‘धुंध’भी क्या क्या करवा लेती है । इतिहास कि यह धुंध देश भक्त गोपाल शर्मा को सर शादी लाल के शराबखाने में रुकने को बाध्य कर देती है राजनीति कि धुंध ऐसे बुरी तरह छाई है कि साफ नजर ही नहीं आता राजनीति, इतिहास, संस्कृति सब को इस तरह धुंध में डुबो दिया गया है कि सही गलत करने का फैसला करना बड़ा मुश्किल होता है । मेरी पत्नी ने ‘टाइड’ साबुन खरीदा घर आकर पता चला वह तो अमेरिका कि प्रोक्टर एंड गेम्बल का साबुन है अपनी देश भक्ति से काफी परेशान हूँ कहीं कहीं स्थानो पर चाय पीजिए तो आईटीसी (ITC) कि मिलती है या अमेरिकन कंपनी हिंदुस्तान यूनिलीवर की ।सर शोभा सिंहएक एक चीज में अमेरिका इतना घुला हुआ है की पता ही नहीं चलता आप इस धुंध मे अंजाने ही साम्राज्यवादी शक्तियों की मदद कर बैठते है, अरे चाय पियो तो सोसायटी, आसामी, टाटा, गिरनार की पियो । काजू बादाम करीदो तो बहुत सारी अमेरिकन कंपनियाँ बेचती है, तब बहुत परेशान हो जाता हूँ जब यह धुंध हटती नहीं मैं इस देश का रहने वाला हूँ इसी देश की चीजे खरीदना चाहता हूँ जैसे जापानी करते है और मेरे देश के ही तंत्र ने मुझसे यह सुविधाए छिन ली है मेरे हाथो से । सुबह उठता हूँ तो ‘जहरीले’कॉलगेट की जगह डाबर लाल मंजन करता हूँ मैं मैसूर सेंडल साबुन या गौशाला के देसी साबुन से नहाता हूँ, हर चीज को आजकल खोज-खाज कर खरीदता हूँ । लेकिन इतनी धुंध छोड़ दी गई है की हमें पता ही नहीं चलता कहाँ से साम्राज्यवादी घुस रहे है परेशान हो जाता हूँ ‘राष्ट्र’और‘देश’मे फर्क बताने वाले लोग मेरी तरह परेशान हो जाते है मैं देश द्रोही तो हो ही नहीं सकता ।

मेरा सपना है डेरा इस्माइल खां के पास सिंध नदी के किनारे मैं नहा सकु जहां मेरे पूर्वज भारद्वाज ऋषि ने वेद की पहली ऋचाएँ गाई थी मेरा सपना है की डेरा इस्माइल खां के पास उस प्राचीन एतिहासिक गोमल दर्रे को देख सकु, मेरा सपना है की मुल्तान के पास मालबा में जाकर रहूँ ;जहां मालवीय ब्राह्मण होते थे मेरा सपना है की मुल्तान के पास जोहराबाद में जाकर देखूँ वहाँ यौधेयगणो की कुछ स्मृतियाँ तो बाकी होती ही , इतिहास पर इतनी धुंध बिखरी हुई है की उसका कोई उत्तर नहीं है संस्कृति पर इतनी धुंध बिखरी है की असंभव यह तय करना क्या सही है राजनीति में तो धुंध ही धुंध है इस धुंध को हटा दो तो सब स्पष्ट नजर आएगा, लेकिन मेरे ये सपने सिर्फ सपने ही रह जाएंगे जब तक शोभा सिंह और शादीलाल जैसे चरित्र जिंदा है और आज भी कई शादीलाल और शोभा सिंह है भारत सरकार के मंत्रिमंडल मे इन्हें भी कभी सर की उपाधि तो नहीं मिलेगी लेकिन एक भारत रत्न जरूर मिल जाएगा ! राजीव गांधी को भी मिला था जबकि स्विस बेंकों मे उनके खातो की बात किसी से नहीं छिपी है , भारत का भगवान ही मालिक है

4 comments:

  1. Shadi lal and Shobha SINGH were traitors. We should erase their memories by public domain

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  2. शादी लाल और शोभा सिंह दोनो गद्दारो पर लानत है ।

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  3. Meri to dono k liye dil se baddua ki on dono ko salamat tk muaafi n mile n enko n enke vanshajo ko

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  4. ये जानकर बहुत शर्मिन्दा हूँ

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